Quantcast
Channel: एकोऽहम्
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1063

भेस से धर्म रक्षक काम से धर्म बैरी

$
0
0
त्रिपोलिया गेट से घर लौट रहा था। रास्ते में उत्तमार्द्धजी का फोन आया - ‘पपीता लेते आईएगा।’ मैं असहज हो जाता हूँ। ‘गृहस्थ’ बने इकतालीस बरस से अधिक हो गए लेकिन घर-गिरस्ती की अकल अब तक नहीं आई। एक ठेले पर पपीते नजर आए। रुक गया। बिना भाव-ताव किए ठेलेवाले से बोला - ‘भई, तेरे हिसाब से, ढंग-ढाँग के दो पपीते दे दे।’ दो-चार पपीते टटोल कर, दो पपीते निकाल, तराजू पर रखने लगा। मैंने ‘यूँ ही’ कहा - ‘मुझे सामान खरीदने की अकल नहीं है। तू जाने और तेरा राम जाने।’ सुनकर वह चिहुँक गया। उसके हाथ रुक गए। बोला - ‘अरे! आपने तो बात राम-ईमान पर ला दी बाबूजी!’ हाथ के दोनों पपीते रख दिए। पाँच-सात पपीतों को थपथपाया, सूँघा और खूब सावधानी से दूसरे दो पपीते निकाल, तराजू पर रख दिए। उसके चिहुँकने ने मेरा ध्यानाकर्षित किया। उसका नाम पूछा। बोला - ‘भूरिया।’ मुझे लगा, झाबुआ जिले का आदिवासी है। वहाँ ‘भूरिया’ कुल नाम (सरनेम) बहुत सामान्य है। मैंने कहा - ‘वो तो है पर तेरा नाम क्या है भैया?’ बोला - ‘भूरिया खान’। अब मैं चिहुँका- खान और राम के नाम पर डर गया?  पहनावे, बोल-चाल से वह कहीं से ‘खान’ नहीं लग रहा था। मैंने उसे धन्यवाद दिया और चल पड़ा।

अगले दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ। उत्तमार्द्धजी मधुमेही हैं। उन्होंने जामुन की फरमाइश की। माणक चौक में महालक्ष्मी मन्दिर की दीवारे के सहारे कुछ महिलाएँ जामुन ले कर बैठती हैं। पहली नजर में मुझे जामुन अच्छे नहीं लगे। आधे-आधे लाल, आधे-आधे काले। मैंने आधा किलो जामुन माँगे। उसने लापरवाही से जामुन तराजू पर रखे। अचानक ही मुझे कलवाली बात याद आ गई। मैंने कहा -‘मुझे जामुन की परख नहीं है। मरीज के लिए ले जा रहा हूँ। तू जाने और तेरा राम जाने।’ सुनते ही उसने, मानो घबराकर सारे जामुन वापस टोकरी में उँडेल दिए और घबरा कर बोली -‘अरे! राम! राम! बाबूजी। पहले ही कह देते!’ और एक-एक जामुन छाँट कर तराजू पर रखे। मैंने उसका नाम पूछा तो बोली - ‘गरीब का क्या नाम बाबूजी! आप किसी भी नाम से बुला लो।’

ये बातें यूँ तो रोजमर्रा की हैं लेकिन इन दिनों धर्म के नाम पर जो कुछ हो रहा है और राज्याश्रय में होने दिया जा रहा है, उन सन्दर्भों में मौजूँ और विचारणीय हैं। ये दोनों ‘छोटे लोग’ मुझे सर्वाधिक धार्मिक लगे। धर्म के नाम पर और धर्म रक्षा के नाम पर दंगा करनेवाले और निरपराध, निर्दोष लोगों के प्राण लेनेवाले यदि इन दोनों को देख लें तो उन्हें निश्चय ही अपने कुकर्मों पर शर्मिन्दगी हो। लेकिन ऐसा होगा नहीं क्योंकि जो कुछ वे कर रहे हैं वह खूब सोच-विचार कर, सोद्देश्य, सुनियोजित तरीके से कर रहे हैं। ‘धर्म’ उनकी चिन्ता बिलकुल ही नहीं है।

मेरे कस्बे के लोकव्यवहार पर श्वेताम्बर जैन समाज का भरपूर प्रभाव है। इतना कि मेरे कस्बे के निजी और सार्वजनिक आयोजनों की रसोइयों में प्याज-लहसुन का उपयोग नहीं होता। अपने जैन आमन्त्रितों की चिन्ता करते हुए, अजैनी भी अपने यहाँ जनम-मरण-परण पर बननेवाले भोजन में प्याज-लहसुन नहीं वापरता। श्वेताम्बर जैन समाज, पूरी सतर्कता और चिन्ता से ‘धर्म-पालन’ का ध्यान रखता है। मैंने एक बार पूछा - ‘धर्म-पालन से क्या अभिप्राय है? धर्म को पालना-पोसना या धर्म के निर्देशों का पालन करना?’ बहुत ही सुन्दर जवाब मिला - ‘दोनों। धर्म के निर्देशों का पालन होगा तो ही तो धर्म पलेगा-पुसेगा!’ सुनते ही मुझे जिज्ञासा हो आई - ‘कौन अधिक धार्मिक है? अपने धर्म के निर्देशों का पालन करनेवाला जैन या जैन की धार्मिक भावनाओं की चिन्ता करनेवाला अजैन?’ लेकिन अगले ही पल अपनी मूर्खता पर झेंप आ गई। धार्मिक होना तो बस धार्मिक होना होता है। कम धार्मिक या ज्यादा धार्मिक से क्या मतलब? जाहिर है, अपने धर्म के साथ ही साथ अपने साथवाले के धर्म की चिन्ता करना भी अपना धर्म है। इसी बात को गाँधी ने अपना आदर्श बनाया था - ‘जो सब धर्मों को माने वही मेरा धर्म।’ लेकिन गाँधी ने तो बहुत बाद में कहा। गोस्वामीजी बहुत पहले ही कह गए -

‘परहित सरिस, धरम नहीं भाई।
पर पीड़ा सम नहीं अधमाई।’

जाहिर है, धर्म के नाम पर हत्याएँ करनेवाले केवल हत्यारे हैं, धर्म रक्षक बिलकुल नहीं। प्रत्येक धर्म, धर्म पर मर जाने की बात करता है, मारने की नहीं। किसी के प्राण लेना धर्म हो ही नहीं सकता। मैं जब भी धर्म के नाम हत्या का कोई समाचार पढ़ता हूँ तो हर बार मुझे, मरनेवाला ही धार्मिक लगता है। वह अपने धर्म के कारण, अपने धर्म के लिए ही मरा। उसे मारनेवाले तो अपने ही धर्म के दुश्मन हैं। वे अपने धर्म को ‘हत्यारा धर्म’ साबित करते हैं। लेकिन केवल हत्या करनेवाले ही क्यों? वे तमाम लोग भी हत्यारे ही हैं जो अपने धर्मानुयायियों का हत्या करते हुए चुपचाप देखते रहते हैं, मरनेवाले को बचाने आगे नहीं आते। पूछो तो मासूम जवाब मिलता है - ‘कैसे बचाते? वे मुझे भी मार देते।’ जाहिर है, किसी को बचाने का अपना धर्म उन्हें याद नहीं रहता और वे भी हत्यारों में शामिल हो जाते हैं। धर्म के लिए जान देनेवाले अब नहीं रहे। अब तो धर्म के नाम पर जान लेनेवाले, हत्यारे, अपराधी ही बचे हैं।

यह सब देख-देख कर मुझे लगता है, अब धर्म स्थलों में धर्म नहीं रह गया है। वहाँ तो केवल दिखावा और चढ़ावा रह गया है। चढ़ाई गई सामग्री को बाजार में बेच कर अपनी जेब भारी करने के व्यापार केन्द्र बन कर रह गए हैं। आठ-आठ, दस-दस दिनों तक चलनेवाले धार्मिक आयोजन/उपक्रम मुझे निष्प्राण, निरर्थक लगने लगते हैं। इनका कोई असर होता नजर नहीं आता। लगता है, ऐसे आयोजनों/उपक्रमों में और अपराधों में कोई प्रतियोगिता चल रही हो - देखें! कौन आग बढ़ता है?

जब मैं यह सब लिख रहा हूँ तभी मुझे समाचार मिला कि कैलाश मानसरोवर यात्रा के दो जत्थे रास्ते से ही लौट आए हैं। चीन ने बाधा पैदा कर दी और अपने ही द्वारा जारी वीजा खारिज कर दिया। लेकिन लौटे हुए जत्थों के सदस्यों ने कोई हुड़दंग नहीं किया। और तो और, धर्म की ठेकेदारी करनेवालों की भी बोलती बन्द रही। किसी की धार्मिक भावनाएँ आहत नहीं हुईं। सबको मालूम है कि यह दो राष्ट्रों के बीच का मामला है। यहाँ सचमुच में ‘राष्ट्र प्रथम’ है, धर्म नहीं। धर्म की दुकानदारी करनेवाले भली-भाँति जानते हैं कि वे कुछ भी कर लें, कुछ होना-जाना नहीं। लेकिन, अन्तरराष्ट्रीय सन्दर्भों में ‘राष्ट्र’ की विवशताएँ अनुभव कर, अपनी जबानों पर ताला लगानेवालों को आन्तरिक सन्दर्भों में ‘राष्ट्र धर्म’ या कि ‘राष्ट्र प्रथम’ याद नहीं रहता। धर्म के नाम पर दंगे और हत्याएँ करनेवाले तमाम लोग भूल जाते हैं कि भारत एक ‘धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणराज्य’ है और उनके इन दुष्कृत्यों से पूरी दुनिया में भारत की यह छवि भंग होती है, बदनामी होती है, भारत के माथे पर कलंक लगता है, भारत का सिर शर्म से झुकता है।

देश का अपना कोई धर्म नहीं होता। यदि होता भी है तो केवल ‘लोक-कल्याण’। इससे कम या ज्यादा कुछ नहीं। धर्म के नाम पर उपद्रव करनेवाले चाहे जितने खुश हो लें लेकिन वे ‘धर्म रक्षक’ नहीं ‘धर्म के दुश्मन’ हैं। धर्म रक्षा का भार तो पपीता बेचनेवाले तमाम भूरिया खान और अनाम रहनेवाली जामुन बेचनेवाली तमाम महिलाओं के जिम्मे है। जिसे वे निष्ठापूर्वक उठा रहे हैं, निभा रहे हैं।
-----

(दैनिक ‘सुबह सवेरे’, भोपाल में, 29 जून 2017 को प्रकाशित)


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1063

Trending Articles