कुत्ते की जगह जज साहब
यह पोस्ट 23 अगस्त 2020 को फेस बुक पर प्रकाशित हुई थी। इन्दौरवाले मेरे आत्मन प्रिय धर्मेद्र रावल को इसकी जानकारी, कुछ दिनों के बाद मिली - अपने एक सजातीय से। धर्मेन्द्र और सुमित्रा भाभी इन दिनों अपने...
View Articleबब्बू के मुँह से बोली भारत की असली ताकत
यह इसी तेरह मार्च की बात है। अपराह्न लगभग तीन बजे बब्बू को फोन किया - ‘दुकान कतरी वजाँ तक खुली रेगा?’ (दुकान कितनी बजे तक खुली रहेगी?) जवाब में उसकी आवाज से लगा, उछलकर बोल रहा हो - ‘अरे! आप! मूँ तो...
View Article‘दरद दीवानी’ की कविताएँ पढ़ने से पहले
दादा श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह अपने ब्लॉग पर देने की शुरुआत कर रहा हूँ। जो संग्रह मुझे मिल गए हैं, उन्हें एक के बाद एक, यहाँ देना जारी रखूँगा। उनके बाद जैसे-जैसे संग्रह मिलते जाएँगे, उनकी...
View Articleतन को तो मैं समझा लूँगी
श्री बालकवि बैरागीके प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की पहली कविता तन को तो मैं समझा लूँगी मन समझाने तुम आ जाओयूँ न समझो पग न उठेंगे, छलिये क्या फिर दुहराऊँपग संचालित हैं...
View Articleराधाएँ तो लाख मिलीं
श्री बालकवि बैरागीके प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की दूसरी कविताकलाकार की अन्तर्वेदनाजीवन के इस वृन्दावन की महकी-महकी गलियों मेंराधाएँ तो लाख मिलीं पर, जसुदा एक न मिल पाई।ज्यों ही मेरे वृन्दावन पर,...
View Articleमन बंजारा
श्री बालकवि बैरागीके प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की तीसरी कवितातन को तो मिल गई शरण ओ! दाता तेरे आँगन मेंबता देवता कब तक भटकेगा मेरा यह मन बंजारा।जिस-जिस हाट गया यह निर्धन, उसमें इसको मिली...
View Articleरीता पेट भरूँगा कैसे
श्री बालकवि बैरागीके प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की चौथी कविताप्रतिदिन सौ-सौ गीत लिखे पर कागज रीते पड़े हुएकठिन प्रश्न है इन गीतों से रीता पेट भरूँगा कैसे?ये चपटे, चौकर, त्रिकोण कपासी टुकड़े कागज...
View Articleया तो मेरे देस पधारो
श्री बालकवि बैरागीके प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की पाँचवीं कविता या तो मेरे देस पधारो या फिर अपने देस बुलाओ ना सन्देशे देते ही...
View Articleयह कितना उपकार कर दिया
श्री बालकवि बैरागीके प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की छठवीं कवितादो पल से भी अधिक नहीं है उम्र हमारे परिचय कीपल भर में ही तुमने मुझ पर यह कितना उपकार कर दिया!अनजानी जिज्ञासा तुमने मेरे अन्तर की...
View Articleमेरा कवि भी हार गया है
श्री बालकवि बैरागीके प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की सातवीं कवितापीड़ाओं के सौ-सौ सागर मैंने हँस-हँस पी डालेलेकिन तेरे पनघट पर तो, मेरा कवि भी हर गया है।जिस माटी से मेरे मन के महलों का निर्माण हुआ...
View Articleओ! निष्ठुर पाषाण
श्री बालकवि बैरागीके प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की आठवीं कविताअब तो परख वेदना मेरी ओ! निष्ठुर पाषाणअरे ओ! कठिन हृदय पाषाण!साँस-साँस न्यौछावर कर दी मैंने तेरे पूजन मेंशैशव-यौवन-मधुमय जीवन किया...
View Articleनरक दुवारे जाऊँगा ही
श्री बालकवि बैरागीके प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की नौवीं कवितामृत्यु लोक का मनुज अपूरण, मैं कमजोरी का पुतलास्वर्ग अगर ठुकरायेगा तो नरक दुवारे जाऊँगा हीमेरे जैसे जितने भी तन इस दुनिया में आते हैंइस...
View Articleदुःख-सुख जो चाहे दे डालो
श्री बालकवि बैरागीके प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की दसवीं कविता दुःख-सुख जो चाहे दे डालो मैंने झोली फैला दी है। नाम तुम्हारा...
View Articleतू क्या जाने रे परदेसी
श्री बालकवि बैरागीके प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की ग्यारहवीं कवितारस पीकर बन गया विदेसी और नहीं अब सुधि लेता हैतू क्या जाने रे! परदेसी, सावन कितना दुःख देता है।नग्न नीम की, नव फुनगी पर, कोयलिया...
View Articleमादक नयनों की मादकता
श्री बालकवि बैरागीके प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की बारहवीं कविताइतिहासों के विजयी स्वर हैं, ऐसे-वैसे बैन नहीं हैंमादक नयनों की मादकता, मदन तुम्हारी देन नहीं है?कुन्दन काया, कंचन छाया, बोझिल यौवन...
View Articleये सपने बेशरम तुम्हारे
श्री बालकवि बैरागीके प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की तेरहवीं कवितामुझे कहीं का नहीं रखेंगे, ये सपने बेशरम तुम्हारेकल से इन्हें न आने देना, वर्ना द्वार बन्द कर दूँगा।नाम तुम्हारा बतला कर ये, बिना...
View Articleये मेघा कजरारे
श्री बालकवि बैरागीके प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की चौदहवीं कवितातेरे देस भी छाये होंगे ये मेघा कजरारेकल तक की परदेसिन पछुवा, मुसे लिपट गई आकरस्वयं तृप्ति की साँस ले रही, मेरी प्यास जगा...
View Articleमैं निर्धन हूँ
श्री बालकवि बैरागीके प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की पन्द्रहवीं कवितामैं निर्धन हूँ इससे मेरे प्रियतम मुझको, मत ठुकराओ।तन रक्खा, मन तुमको सौंपा, ठुकरा करके राज-दुवारेअब मेरे जो कुछ हो, तुम हो,...
View Articleहाँ, हाँ वे ही तुतले-तुतले
श्री बालकवि बैरागीके प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की सोलहवीं कविताहाँ, हाँ वे ही, तुतले-तुतले, हकले-हकले शरमीलेप्राण! तुम्हारा यश गा-गा कर, मेरे गीत वाचाल हो गये।बात-बात में जो शरमा कर, लाल सुर्ख पड़...
View Articleचारों ओर तुम्हारी भाषा
श्री बालकवि बैरागीके प्रथम काव्य संग्रह ‘दरद दीवानी’ की सत्रहवीं कविताचारों ओर तुम्हारी भाषा, चारों ओर तुम्हारी वाणीचारों ओर तुम्हारा दर्शन, फिर भी सूनापन लगता हैकितना सूनापन लगता है.....पनघट-पनघट बात...
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